Tuesday 29 September 2015

गज़ल

मेंहदी के रंग बनकर कोई आया है हाथों मे,
कांच की चुड़ीयो सा कोई सजाया है हाथों मे।

मचल जाती है तमन्नाएं रह रहकर दिल की,
हमे कोई मुक्द्दर सा आजमाया है अपने हाथों मे ।

ये रूसवाईयां ये तनहाईयाँ अब दुर हो रही है,
ये मोहब्बत एक अजीब सा रंग लाया है हाथों में।

फूलों  सा महकता है दिल का हर कोना कोना,
ताजे गुलाब की छुअन हो जैसे कोई हाथो में।

ये बहारे यूं ही बरसती रहे वफा बनकर "हेमंत"
जैसे कोई पल चांद बनकर समाया हो हाथों में।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापाराByt
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

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