जब भी प्यार को तराशा मैने बेवफा निकली,
अंधेरे मे कुछ और उज़ाला मे कुछ और निकली।
वक्त के साथ प्यार की आदतें भी बदलती रही,
जो कभी जां लुटाते रहे वो बन दिल से खंजर निकली।
दिल लगाया तो हमने कभी दिल्लगी कंहा कि थी,
समझा प्यार की मुरत जिसे वो पत्थर दिल निकली।
अब लगता है आशिकी तास के पत्तो जैसे खेल है,
इक्का भी हमारा तुरूप का फिर जाने क्यों बेगम निकली।
दिल लगाने का जी नही करता कहीं दुनिया मे "हेमंत"
जिसको गले से लगाया वही गले का फंदा निकली।
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment