Tuesday, 30 September 2025

मैं फिर आऊंगा

मैं फिर आऊंगा 


बसंत ने आना नहीं छोड़ा है...
अभी भी
वह किसी तरह
अपनी तय सीमा में 
पहुंच ही जाता है
खिलखिता ,गुनगुनाता,नाचता हुआ
और आता है तो
मदमस्त आता है
सबके लिए ...
वह जब आता है
हवाएं लिपट जाती हैं उससे
फूल खिलने लगते हैं
तितलियां,भौंरे और मधुमक्खियां
उस लय और ताल में
थिरकने लगती हैं
पलास दहक उठता है
सेमल अपनी फूलों के साथ
'सांकृत्यायन' को ही मानो
अपनी यात्राओं का
वृतांत सुनाने लग जाती हैं
महुआ का पेड़ 
अपने गोड़ीं रिवाज में
अर्ध्य समर्पित करने लग जाता है
गुलमोहर के फ्लेम
कोलतार की सड़कों पर
शीतलता बिखेरने लग जातीं हैं
आम का बौर
अपनी सारी प्रेम कहानियां 
अमराई को सुनाने लग जाता है
नदियां अपने बीच आए 
पत्थरों के साथ
लय,ताल और सुर मिलाने लग जातीं है
तीतर, बटेर ,मोर
और न जाने कितने
अपनी पीढ़ी को
बसंत के साथ रोपने लग जाते हैं
आने वाले बसंत के लिए
पर बसंत इस बार
हर बार की तरह
खुश तो है मगर
उदास भी है
वह इस बार भी
बार-बार की तरह
गांव से होकर
शहर की बड़ी-बड़ी
अट्टालिकाओं के साथ भी
गीत गाना चाहता है
नाचना चाहता है
और इस हेतु
वह गया भी था
बड़ी ऊंची दीवारों के सहारे
पर अट्टालिकाओं की खिड़कियों नें
उनके तरफ देखा तक नहीं...
उसने खिड़कियों की तरफ
मुस्कुराकर देखते हुए कहा
खैर कोई बात नहीं!
मैं फिर आऊंगा
पर
बसंत अब लौट जाना चाहता है
पूरे साल भर के लिए....

हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़ 








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