आठ सौ स्क्वेयर फूट
घर वास्तव में
प्रेम और आवश्यकताओं का
एक गतिशील समूह है
प्रेम भी अनंत है
और आवश्यकताएं भी अनंत है
परंतु घर में
परिश्रम अनंत नहीं है
इस लिए घर
हमेशा उलझता और सुलझता हुआ
घर रहता है
कभी दीवारें दरकती हैं
कभी छत टपकता है
कभी पेंट भरभराता है
कभी दरवाजे का कें-कें, रें -रें
बच्चों का ट्यूशन
कालेज की फीस
हास्टल का चार्ज
घर का राशन
बिजली का बिल
मां की दवाई...
इन सब का सामंजस्य
हमेशा उलझा हुआ रहता है
प्रेम के ताने-बाने के संग
इस लिए
आठ सौ स्क्वेयर फूट का घर भी
बहुत बड़ा घर होता है
इतना बड़ा कि
पूरे तीस दिन की सैलरी
पन्द्रह दिन में हांफ जाती है....
हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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