'पितृ पक्ष'
पितृ पक्ष
मेरे लिए
खास होता है
खास इसलिए होता है कि
मैं बहुत कुछ
जानना चाहता हूं
अपने पितरों के
इतिहास के बारे में
मेरे पास जो जानकारी है
दादा परदादा तक ही है
मैं
पर-परदादाओं को भी
जानना चाहता हूं
पर खेद है!
उन मेरे वंशजों को
कोई माध्यम नहीं है
जानने का
कबीर पंथ में क्रिया कर्म
सब घर में ही हो जाते हैं
अतः लेख भी उपलब्ध नहीं हैं
खैर कोई बात नहीं!
मेरे मन में हमेशा कौतूहल रही है
कि, मेरे वंशज
किस तरह के मकानों में
रहते रहे होंगे
कि वे किस तरह के कपड़े पहनते
रहे होंगें
कि वे त्योहार किस तरह से
मनाते रहे होंगें
कि उनकी
सांस्कृतिक परंपराएं और
खान-पान
किस तरह की रही होंगी
इत्यादि....
मुझे तर्पण करने में
कोई लगाव नहीं है
'बरा-सोंहारी' भी
नहीं 'खवाना' मुझे
ना छत पर
दाल-भात
फेंकना है
अपने पितरों के लिए
रूढ़िवादी विचारों से
मेरा कोई सरोकार नहीं है
बस मैं तो
स्वस्थ मानसिकता और
स्वस्थ प्रेम से
उन्हें जानना चाहता हूं
उन्हें याद करना चाहता हूं
मैं पितृपक्ष का
सदैव आभारी रहूंगा
जीवन के इस
भाग-दौड़ में
अपने पूर्वजों को
जिन्हें हम भूल
गये होते हैं
उन्हे याद करने
उनका गौरव गान करने
का एक मौका
यह पितृपक्ष
देता है
यह पन्द्रह दिन
मेरे लिए बहुत
असाधारण रहता है
मैं अपने होने को
उनमें तलाशता रहता हूं....
हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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