विद्रोह से पहले
एक घर है
मेरे मुहल्ले में
मैं आते-जाते
रोज ही
उस घर को देखता हूं
मुझे और घर
आते-जाते
कभी-कभी दिखाई देते है
पर वह घर
रोज ही
दिखाई देता है
इसलिए दिखाई देता है
कि उस घर के ऊपरी मंजिल में
एक खिड़की हमेशा खुली रहती है
और चूड़ियों से भरे हाथ
बाहर निकले हुए होते हैं
जो बाहर की रौशनी में
स्पष्ट दिखाई देता है
ऐसा लगता है उस घर में
उस कमरे की लाईट
रोज ही बंद रहती है
ध्यान से देखने पर दिखता है
कुछ घुंघराले काले बाल
और एक सिर
जो
खिड़की के जेल सरिखे छड़ों पर
हमेशा टिका रहता है
आंख ऊपर किए
और
आकाश की तरफ देखता रहता है...
हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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