"वृद्धावस्था "
मैं अब उस दौर में हूं
कि चलने को भी
ठहरना कहना पड़ रहा है
त्वरण जैसे लुप्त हो गया है
गति के सारे नियम
अब मिथ्या जान पड़ते है
जीवन और मृत्यु के बीच
बिलकुल सापेक्ष हो गया हूं
फेफड़े विसरण तो करते हैं
पर रुधिर आक्सीजन को
समेट नहीं पा रहा है
न्यूरान्स और न्यूरोग्लिया
अपनी सेवा देकर
सेवानिवृत्ति की ओर
बढ़ रहे है
संचेतना अक्रिय गैसों की तरह
अष्टक प्राप्त कर चुकी है
ग्रंथियों ने शिथिलता
जाहिर कर दिया है
माइटोकांड्रिया ग्लूकोज के साथ
लुका-छिपी खेलने लगा है
कोलेजन और इलास्टिन ने
कोशिकाओं से प्रेम करना बंद कर दिया है
पाइरुइक एसीड टखनों में जाकर
लेक्टिक एसीड में
बदलने लगा है
शरीर का परिमाण
अंतिम परिणाम तक
पहुंचने लगा है
अवतल, उत्तल को आंखों ने
समझना बंद कर दिया है
उत्प्रेरकों नें साथ छोड़ दिया है
धीरे -धीरे सारी अभिक्रियाएं
बंद हो रही है
अब ऐसा लगने लगा है
किसी भी क्षण
ये सारी अभिक्रियाएं बंद हो जाएंगी...
हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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