स्त्रियां नदी की तरह होती है
उनमें तरलता होती हैं
बहाव होता है
इस लिए स्त्रियां
प्रेम को बहा सकतीं हैं
खुशबू की तरह फैला सकती हैं
कभी मां बनकर
कभी बहन बनकर
कभी दोस्त बनकर
स्त्रियां-प्रेम का मूर्त रूप होती हैं
पुरुष समुद्र की तरह होते हैं
नमकीन और कठोर
शायद सतत संघर्ष ने पुरुषों को
कठोर और सख्त बना दिया है
स्त्रियों की तरह उनमें लचीलापन नहीं है
इसका यह मतलब भी नहीं है
कि पुरुष में प्रेम नहीं होता
पुरुष में भी प्रेम होता है
पर ! पुरुष के प्रेम में बहाव नहीं होता
ठहराव होता है
वह अपने प्रेम के पास
अमूक होकर ठहर जाता है
उसका ठहरना ही
प्रेम का प्राकट्य है
प्रेम के मामले में
असल में पुरुष ,एक स्त्री है
क्यों कि स्त्री के मूल में ही
प्रेम है
ये अलग बात है
पुरुष का पुरुष होना
सबको दिखाई देता है
पर,पुरुष का स्त्री होना
किसी को दिखाई नही देता......
हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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