Wednesday, 11 January 2017

ग़ज़ल

१२२/१२२/१२२/१२२

दिवाना अभी कोई घायल दिखा है,
मुहब्बत मे फिर कोई पागल दिखा है।

मुझे रहने दो इन किनारों पे आकर,
बड़ी मुद्दतों बाद साहिल दिखा है।

तमाशा है तेरा या कोई सजा है,
मरी फस्लें तब जाके बादल दिखा है।

मै अपनी हरम रख दिया हूं वहां पर,
जहां सांपों से लिपटा संदल दिखा है।

शहर की हवा मतलबी हो गई है,
हरिक सम्त मे कोई गाफ़िल दिखा है।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा











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