खलिहानो के रूप अनुपम,
नव वधु सा खिला है चितवन,
मेढ़ों पर डाल पवन संग झूमें,
खग गुंजन से भरा है उपवन।
झांकती अंबर से सूर्य किरणें,
रक्ताभ ऊन के गोलों सा दिखता,
देख रहा तरूणवर के ह्रिदय तल से,
अपना झिलमिल सुन्दर चितवन।
धरती ठंड से कांप रही है,
ओस के बूंदो से पत्ते हैं चरमर,
कानन मानो धू धू जल उठा है,
धुआं धुआं है अम्बर का तल।
श्वेत वस्त्र सा दिख रहा है ,
पर्वतों पर हिम का वृहद फैलाव,
झर झर गिरते झरने दिखते,
झुमर हो जैसे वृहद भाल पर।
इठलाती बलखती बेलें तरू पर,
बालों के लट सा अनुपम बिखरा है,
कोमल हरित तृण मखमल हो जैसा,
सज रही धरा बन यौवना चंचल।
रचना
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
8871805078
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