२१२/२१२/२१२/२१२
गैरों की बात मुझको तो करना नही,
जब ये साया मेरा होता अपना नही।
पांव तो हैं बेशक इस जमी पे मगर,
जिंदगी भर यहां तो है रूकना नही।
रोक लेता मगर जानता था उसे,
वक्त भी तो कभी साथ ठहरा नही।
मेरी दादी कहा करती थी बात जो,
ठोकरें खा के भी मैने समझा नही।
भूल जाना कभी था ये घर अब कहाँ,
ये महज मिट्टी हैं जो गिराया नही।
बस ये आखिर मे दो गज जगह है मेरा,
और अब कोई भी तो ठिकाना नही।
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़
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