2212/2212/2212
अक्सर मै फूलों को बचाया करता हूँ,
कांटो से मै खुद को सजाया करता हूँ।
इन मन्दिरों मे मस्जिदों मे जाना क्या,
कुछ भूखे बच्चों को खिलाया करता हूँ।
हँस्ता बहुत हूँ पर तुने जाना नही,
मै रात भर छुप छुप के रोया करता हूँ।
आना शहर मुझसे कभी मिलने जरा,
मै सब को आईना दिखाया करता हूँ।
मै प्यार मे जीता करूं ! चाहत नही,
मै प्यार मे सब हार जाया करता हूँ।
गजल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
No comments:
Post a Comment