Friday, 13 January 2017

कविता

ददा के दुलार  पातेंव,
दाई के दुलार  पातेंव,
बेटी  अंव त का भईगे,
मया के संसार पातेंव।

मोरो तो मन होथे,
चुरगुन बन उड़ जातेंव,
पिंजरा झन होतिस कोनो,
खुल्ला में अगास पातेंव  ।


मोरो हवय सपना,
पढतेंव इस्कूल कालेज,
बेटा असन महूं ददा,
जघा जघा नाव कमातेंव।

झन करहू जल्दी बिहाव,
पहिली मोला सिरजाव,
देखन दव दुनिया दारी,
जियें के मे रद्दा पातेंव।

आवन दव मोला तुमन,
झन मारव कोंख म जी,
बेटी बेटा एके खून,
दुनो म झन अंतर पातेंव।

ताना झन कोनी कसतिस,
मोर विधवा के मान होतिस,
संग समाज के रसदा म,
हांथ आघू आघू महूं लमातेंव ।

सुघ्घर जिनगी होतिस,
सास ससुर देवर होतिस,
जरतिस झन जिंहा बहू,
अईसे मय ससुरार पातेंव।

रचना
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा

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