Sunday, 31 August 2025

मेरी मां

मां मुझे 
मेरे शरीर में
उठ रही तरंगों से
पहचान लेती है
आज मैं अड़तालीस का
हो गया हूं
और वह बहत्तर के करीब है
जब मैं घर में रहता हूं
मैं जिधर भी जाऊं 
इस कमरे से उस कमरे तक
या पोर्च तक जाऊं
या छत पर चढ़ जाऊं 
हर पल उसकी आंखें
मुझे तलाश करती रहतीं है
मां पल-पल मुझे संज्ञान में रखती है
वह बहरी भी हो गई है
पर मैं अगर धीरे से भी बोलूं 
वह तुरंत समझ जाती है
मेरे होंठ लपलपातें हैं
और उनकी धुंधली आंखें
मुझे झटपट पढ़ लेतीं हैं
कुछ समय ऐसा भी आता है
जब मैं और मां केवल रहते हैं
तब मैं देखता हूं
मां के हाथ पैरों में गजब का
फुर्तीलापन आ जाता है
बिन कहे वह सब जान लेती है
दाल भात सब्जियां 
उसके कांपते हाथों से
केवल मेरे पसंद की
बनने लगती है
स्कूल के लिए निकलूं तो 
मोटर साइकिल की चाबी 
रेन कोट, हेलमेट ,पेन
सब कुछ तैयार मिलता है
और मैं जब जाने लगूं 
मां मुझे दूर तक देखती है
मैं भी रुकता हूं
अपनी मां के लिए
दूर से ही सही एक पल के लिए 
मुड़कर देखता हूं
अपनी मां को
और अपने काम पर चला जाता हूं....

हेमंत कुमार 'अगम' 
भाटापारा छत्तीसगढ़ 






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