जब हम बाल शिक्षण की बात करते हैं ,तो हमारे मन में एक सवाल उत्पन्न होता है। आखिर में ये बाल शिक्षण क्या है ? यह बाल शिक्षण कैसे होना चाहिए,बाल शिक्षण की क्या - क्या सीमाएं हो सकती है ? जब हम बच्चों को शिक्षण से जोड़ते हैं या जोड़ने का प्रयास करते हैं और बच्चों का विश्लेषण करते हैं तब हमें पता चलता है की ,प्रायः-प्रायः सभी बच्चे एक दूसरे से भिन्न हैं और इतना भिन्न है की एक के लिए बनाया गया मनोविज्ञान , अध्यापन प्रणाली और उससे संबंधित पैंतरे दूसरे के लिए बिल्कुल ही भिन्न हो जाते हैं ,अन्य बच्चे उस खाचें में बैठते ही नहीं ।हमारी योजनाएं समग्र रूप से हर बच्चे के लिए काम ही नहीं करती,और तब हमारी योजनाएं धरी की धरी रह जाती है।
प्रश्न यह उठता है कि आखिर औसतन रुप से इन बच्चों को उनके अनुकूलन की परिधि में दक्षता हासिल करने के लिए किस तरह का सुविधा जनक वातावरण तैयार किया जाय।जिससे वह बच्चा अपने बाहरी अनुकूलन की दशाओं और स्कूली वातावरण की अनुकूलन दशाओं में सामंजस्य स्थापित कर सके ! मैंने यह भी देखा है ,ज्यादातर सुविधा जनक वातावरण बच्चों को आकर्षित तो करते हैं !पर वह पानी में लकीर खींचने जैसा होता है।
(सुविधा जनक वातावरण से यह आशय है कि हमने जिसमें शिक्षक ,पालक,और शिक्षा से जुड़े हुए शिक्षाविदों ने यह समझकर कि यह वातावरण बच्चों के लिए उपयुक्त है , ज्यादातर वातावरण का निर्माण कर लिया है यही बच्चों के लिए घातक साबित हो रहा है)
तो क्या हम वातावरण तैयार करने में गलती करते हैं ,यह भी एक लाजमी प्रश्न है?
शिक्षक इसी काम के लिए व्यवसायिक तौर पर शिक्षा से जुड़ा हुआ है,और यह वातावरण शिक्षक की व्यवसायिक कार्यकुशलता और बच्चों की पूर्व और वर्तमान अनुकूलन की दशाओं के सामंजस्य पर निर्भर कर सकती है।
वातावरण तैयार करने में दो चीज़ें महत्वपूर्ण हो सकतीं हैं
एक तो नया वातावरण जिसमें वह प्रवेश करने वाला है ,और उस वातावरण में अनुकूलन की सीमाएं ?
और बच्चे का वर्तमान वातावरण जिसमें वह अनुकूलित है,में अनुकूलन की सीमायें
हमें यह भी ज्ञात होना चाहिए एक बच्चा कई तरह के वातावरण में एक साथ रहता है अनुकूलित होकर, पर एक शिक्षण ही है जिसे हम बच्चों के साथ अनुकूलित करने के लिए नि:सहाय अवस्था तक पहुंच जाते हैं?
इसका बुनियादी फर्क है और वह फर्क यह है की बच्चा कई तरह के वातावरण में स्वयं अनुकूलित हुआ रहता है और जब शिक्षण की बात आती है तो हम बच्चों को अनुकूलित करना चाहते हैं l
और फिर एक खेल शुरु होता है अवधारणा से खेलने की जिसे ज्यातर बच्चे खेलते हैं और सिक्सर भी लगाते हैं ,
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