निर्विचार
मैं जागना चाहता हूं
आसमान के नीचे
और धरती के ऊपर
बीच निर्वात में
तारों को नजदीक से
और धरती को दूर से
देखना चाहता हूं
मैं छूट जाना चाहता हूं
उस नाम से जिसमें
ग्रहों और नक्षत्रों की
छाया हो
मैं छूट जाना चाहता हूं
उस ज्ञान से
जिसे किसी ने
प्रतिष्ठित किया हो
मैं मुझ पर
स्वंय को
स्थापित होने देना
चाहता हूं
उस तरंग के साथ
आंदोलित होना चाहता हूं
जो मुझमें पूर्ण रूप में
सागर की तरह व्याप्त है
मैं उस रौशनी के साथ
चलना चाहता हूं
जो विचारों को लांघकर
उस पथ तक ले जाए
जहां मैं
निर्विचार हो पाऊं....
हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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