जब वह थकता है
धूप के रेशमी
तारों को ओढ़कर
सो जाता है
धूप से लिपटकर
उसे आराम करना
आता है...
धूप से लिपटकर
बस आराम ही नहीं
वह काम भी करता है
और धूप उसके प्रेम में
असंख्य रजत कणों के रूप में
उसके माथे पर
पसर जाता है
प्रेम इतना की
जब वह नहीं आता
धूप उनसे मिलने
खुद से चला जाता है
टूटे हुए छप्परों के बीच से...
उसने भी धूप को
आत्मसात कर लिया है
और तभी तो वह
काला हो गया है.....
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
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