दौड़ कर
अचानक
एक अजनबी लड़की
अपनी संपूर्ण वात्सल्यता
के साथ
मुझसे लिपटने आती
मैं सहम जाता
सहम इस लिए जाता
क्यों की
मुझमें पुरूष होने का
डर जो विद्यमान है
मैनै सुना है
पुरूष होने का
भय और दुर्भाग्य
फिर भी मैं
घुटने टेककर
जब वह आती
बांहें फैला लेता
एक ओर उसका
वात्सल्य
एक ओर मेरा
पितृत्व
दोनों मिल जाते
एक आलौकिक
संस्कार के साथ
हम दोनों
सदैव के लिए
एक बंधन में बंध जाते
मैं उसका पिता हो जाता
और वो मेरी बेटी.....
हेमंत कुमार ,"अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment