Friday, 11 April 2025

एक अजनबी लड़की

दौड़ कर
अचानक 
एक अजनबी लड़की
अपनी संपूर्ण वात्सल्यता 
के साथ
मुझसे लिपटने आती
मैं सहम जाता
सहम इस लिए जाता
क्यों की
मुझमें पुरूष होने का
डर जो विद्यमान है
मैनै सुना है
पुरूष होने का
भय और दुर्भाग्य 
फिर भी मैं
घुटने टेककर
जब वह आती
बांहें फैला लेता
एक ओर उसका
वात्सल्य 
एक ओर मेरा
पितृत्व 
दोनों मिल जाते
एक आलौकिक 
संस्कार के साथ
हम दोनों
सदैव के लिए
एक बंधन में बंध जाते
मैं उसका पिता हो जाता
और वो मेरी बेटी.....

हेमंत कुमार ,"अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़ 

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