दूर तक मैं नहीं जाऊंगा
मुझे दूरियों से डर लगता है
मुझे चांद और तारे तोड़ लाने में
जरा भी दिलचस्पी नहीं है
हां दफ्तर जरूर जाउंगा
झोला लिए मुस्कुराते हुए
वापसी में झोला भरकर
सब्जियां लाउंगा
बच्चों को सामने वाले उद्यान में
टहला लाउंगा
मम्मी के लिए मेडिकल से
दवाई ले आउंगा
श्रीमती को पास के ब्यूटी पार्लर तक
छोड़ आउंंगा
घर में सबके पास होने से
घर गुलाब की तरह
महक उठता है
जो खुशी मिलती है
घर में
उसे सहेजने के लिए
रात होने से पहले मैं
घर की तरफ लौट आउंगा....
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
यह कविता मौलिक और अप्रकाशित है
No comments:
Post a Comment