Monday, 7 April 2025

घर की तरफ

दूर तक मैं नहीं जाऊंगा
मुझे दूरियों से डर लगता है
मुझे चांद और तारे तोड़ लाने में
जरा भी दिलचस्पी नहीं है
हां दफ्तर जरूर जाउंगा
झोला लिए मुस्कुराते हुए
वापसी में झोला भरकर
सब्जियां लाउंगा
बच्चों को सामने वाले उद्यान में
टहला लाउंगा 
मम्मी के लिए मेडिकल से
दवाई ले आउंगा
श्रीमती को पास के ब्यूटी पार्लर तक
छोड़ आउंंगा
घर में सबके पास होने से
घर गुलाब की तरह 
महक उठता है
जो खुशी मिलती है
घर में
उसे सहेजने के लिए
रात होने से पहले मैं
घर की तरफ लौट आउंगा....

हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़ 
यह कविता मौलिक और अप्रकाशित है


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