Friday 24 February 2017

ग़ज़ल

१२१२/११२२/१२१२/११२१

काफिया -आर  रदीफ -की बात

नहीं है अच्छा हरिक रोज हमसे खार की बात,
कभी तो प्यार से कर लेते हमसे प्यार की बात।

वो जख्मों को जो  हरा करते हैं बता दो उन्हें भी,
किया नहीं वो कभी करते है  बहार की बात।

जरा उठा दे कोई परदा इन बे कदरो के सर से,
जो दंगा करते है फिर करते है वो ज़ार की बात।

उड़ाया कर मेरी बातों का भी मजाक मगर तू,
ना इतना करना कभी तू मगर गुसार की बात।

दिलों में आग लगाते देखी है दुनिया हेमंत,
जो उजले है वो ही करते है जाना ख़्वार की बात।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार
भाटापारा छत्तीसगढ़

खार-कांटा
गुसार -दूर होना
ज़ार-पछतावा
ख़्वार-दुष्ट

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