2212/2212/2212
सूखे गुलाबों को जलाया क्यूँ नही,
टूटे हुए रिश्ते मिटाया क्यूँ नही।
गर थी मुहब्बत तुम्हे हमसे तो बता,
नज़रें मिलाके सर झुकाया क्यूँ नही।
बातों में जब हर जिक्र मेरा होता था,
उसने मुझे कुछ भी बताया क्यूँ नही।
आते रहे छत पे बहाने चाँद के,
आलम ये था तो मुस्कुराया क्यूँ नही।
जब था तसव्वुर मे हरिक आरा मेरा,
हाथों मे अपने फिर सजाया क्यूँ नही।
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा। छत्तीसगढ़
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