Tuesday 21 February 2017

ग़ज़ल

2122/1212/22

जब भी सज़्दा कभी अदा होगा,

हर वो पत्थर सही खुदा होगा।

सुब्ह से आंखो मे नमी सी है,

कोई बारिश कँही हुआ होगा।

हर सज़ा को सज़ा नही कहते,

प्यार मे कैदी भी हँसा होगा।

तेरा मेरा मिलन हुआ जब भी,

चाँद सूरज कँही मिला होगा।

पास आकर गले से लग जाओ,

तुम मिटा दो जो भी गिला होगा।

शह्र मे कोई आग देखा है,

दिल किसी का कँही जला होगा।

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा  छत्तीसगढ़

















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