Monday 20 February 2017

ग़ज़ल

222222222222222(बहरे मीर)

अब जा के समझा हूँ गम का इक तहखाना होता है,

जो खा जाए ठोकर घर उनका मयखाना होता है।

जिनपे जो गुजरी है वो ही जाने गम क्या होता है,

जैसे तैसे घर पहुँचा वरना मयखाना होता है।

पी कर जीने वाले पी कर मरने वाले लाखों हैं,

अपनी अपनी किस्मत मे अपना मयखाना होता है।

शीशे के प्यालों मे दिल को छोड़ा है देखें क्या है,

टूटा तो मयखाना गर छलका मयखाना होता है।

जलता है तो जलने दो होगा कोई उसका सूरज,

पिघला जब मेरा कतरा कतरा मयखाना होता है।

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़

8871805078

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