Friday, 24 February 2017

ग़ज़ल

१२१२/११२२/१२१२/११२१

काफिया -आर  रदीफ -की बात

नहीं है अच्छा हरिक रोज हमसे खार की बात,
कभी तो प्यार से कर लेते हमसे प्यार की बात।

वो जख्मों को जो  हरा करते हैं बता दो उन्हें भी,
किया नहीं वो कभी करते है  बहार की बात।

जरा उठा दे कोई परदा इन बे कदरो के सर से,
जो दंगा करते है फिर करते है वो ज़ार की बात।

उड़ाया कर मेरी बातों का भी मजाक मगर तू,
ना इतना करना कभी तू मगर गुसार की बात।

दिलों में आग लगाते देखी है दुनिया हेमंत,
जो उजले है वो ही करते है जाना ख़्वार की बात।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार
भाटापारा छत्तीसगढ़

खार-कांटा
गुसार -दूर होना
ज़ार-पछतावा
ख़्वार-दुष्ट

Tuesday, 21 February 2017

ग़ज़ल

2122/1212/22

जब भी सज़्दा कभी अदा होगा,

हर वो पत्थर सही खुदा होगा।

सुब्ह से आंखो मे नमी सी है,

कोई बारिश कँही हुआ होगा।

हर सज़ा को सज़ा नही कहते,

प्यार मे कैदी भी हँसा होगा।

तेरा मेरा मिलन हुआ जब भी,

चाँद सूरज कँही मिला होगा।

पास आकर गले से लग जाओ,

तुम मिटा दो जो भी गिला होगा।

शह्र मे कोई आग देखा है,

दिल किसी का कँही जला होगा।

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा  छत्तीसगढ़

















Monday, 20 February 2017

ग़ज़ल

222222222222222(बहरे मीर)

अब जा के समझा हूँ गम का इक तहखाना होता है,

जो खा जाए ठोकर घर उनका मयखाना होता है।

जिनपे जो गुजरी है वो ही जाने गम क्या होता है,

जैसे तैसे घर पहुँचा वरना मयखाना होता है।

पी कर जीने वाले पी कर मरने वाले लाखों हैं,

अपनी अपनी किस्मत मे अपना मयखाना होता है।

शीशे के प्यालों मे दिल को छोड़ा है देखें क्या है,

टूटा तो मयखाना गर छलका मयखाना होता है।

जलता है तो जलने दो होगा कोई उसका सूरज,

पिघला जब मेरा कतरा कतरा मयखाना होता है।

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़

8871805078

Sunday, 19 February 2017

ग़ज़ल

2212/2212/2212

सूखे गुलाबों को जलाया क्यूँ नही,

टूटे हुए रिश्ते मिटाया क्यूँ नही।

गर थी मुहब्बत तुम्हे हमसे तो बता,

नज़रें मिलाके सर झुकाया क्यूँ नही।

बातों में जब हर जिक्र मेरा होता था,

उसने मुझे कुछ भी बताया क्यूँ नही।

आते रहे छत पे बहाने चाँद के,

आलम ये था तो मुस्कुराया क्यूँ नही।

जब था तसव्वुर मे हरिक आरा मेरा,

हाथों मे अपने फिर सजाया क्यूँ नही।

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा।  छत्तीसगढ़


Saturday, 18 February 2017

ग़ज़ल

२१२२/२१२२/२१२२

राख शोलों का लपट गर माँगता है,

फिर तबाही का वो मन्जर माँगता है।

मै पिला देता उसे पानी मगर वह,

खून का पूरा समन्दर माँगता है।

उम्र भर जिसको नचाया ही गया था,

रूह वो अब भी कलन्दर माँगता है।

खेल है अब जिन्दगी से खेलना भी,

अब जिसे देखो वो खन्ज़र माँगता है।

जो नुमाईंदे बने थे आबरू के,

वो हवस का गंदा बिस्तर माँगता है।

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ.

8871805078







Wednesday, 15 February 2017

ग़ज़ल

122/122/122/122

हरिक सख्स तेरा दिवाना है साकी,

ये दुनिया तो पीना पिलाना है साकी।

नशे मे रहा हूँ मै हरदम ये सच है,

तुझे पी लूँ तो होश आना है साकी।

यूँ ही लोग बदनाम करते हैं तुझको,

खुशी का तू सच मे ख़जाना है साकी।

ये दुनिया मुझे समझ ता है जो समझे,

यहीं पर मेरा बस ठिकाना है साकी।

वो जो गालियाँ दे रहा था तुझे कल,

वो भी आज तेरा दिवाना है साकी।

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा

छत्तीसगढ़