Sunday, 31 August 2025

मेरी मां

मां मुझे 
मेरे शरीर में
उठ रही तरंगों से
पहचान लेती है
आज मैं अड़तालीस का
हो गया हूं
और वह अठहत्तर के करीब है
जब मैं घर में रहता हूं
मैं जिधर भी जाऊं 
इस कमरे से उस कमरे तक
या पोर्च तक जाऊं
या छत पर चढ़ जाऊं 
हर पल उसकी आंखें
मुझे तलाश करती रहतीं है
मां पल-पल मुझे संज्ञान में रखती है
वह बहरी भी हो गई है
पर मैं अगर धीरे से भी बोलूं 
वह तुरंत समझ जाती है
मेरे होंठ लफलफातें हैं
और उनकी धुंधली आंखें
मुझे झटपट पढ़ लेतीं हैं
कुछ समय ऐसा भी आता है
जब मैं और मां केवल रहते हैं
तब मैं देखता हूं
मां के हाथ पैरों में गजब का
फुर्तीलापन आ जाता है
बिन कहे वह सब जान लेती है
दाल भात सब्जियां 
उसके कांपते हाथों से
केवल मेरे पसंद की
बनने लगती है
स्कूल के लिए निकलूं तो 
मोटर साइकिल की चाबी 
रेन कोट, हेलमेट ,पेन
सब कुछ तैयार मिलता है
और मैं जब जाने लगूं 
मां मुझे दूर तक देखती है
मैं भी रुकता हूं
अपनी मां के लिए
दूर से ही सही एक पल के लिए 
मुड़कर देखता हूं
अपनी मां को
और अपने काम पर चला जाता हूं....

हेमंत कुमार 'अगम' 
भाटापारा छत्तीसगढ़ 






Wednesday, 27 August 2025

जंगल सत्याग्रह

जंगल सत्याग्रह

एक आम का पेड़, जंगल के बीचों-बीच रहता था। अंबू उसका नाम था।
सब पेड़ों से उसकी दोस्ती थी। पेड़ों से बातें करना, हँसना उसे अच्छा लगता था।
अंबू आम का पेड़ दूसरे पेड़ों के घर भी घूमने जाता था।
अंबू जब अपने पेड़ दोस्तों के घर जाता तो ताज़ा मीठा आम भी ले जाता और बड़े प्यार से अपने दोस्तों को खिलाता।
सभी दोस्त मीठे रसीले आम की प्रसंसा करते और अंबू मन ही मन ख़ुशी से झूम उठता।

जंगल के सारे दोस्त जब अपने दोस्तों के घर जाते, तो अपना मीठा फल भी ले जाते और अपना प्रेम जताते।
यह प्रेम कितना अच्छा था न!

जंगल के सारे पेड़ बहुत सारा फल मानवों और अन्य जीवों के लिए भी छोड़ देते थे और खुश होते थे।

एक दिन अंबू सो रहा था, तभी आवाज़ आई—खट-खट।
अंबू ने दरवाज़ा खोला तो देखा कि जंबू, जामुन का पेड़, हाँफ रहा है।
अंबू बोला—“अंदर आओ दोस्त।”
जंबू बोला—“न-न-न… आने का समय नहीं है।”
अंबू घबरा गया—“आख़िर क्या हुआ? बताओ न…”

जंबू बोला—“गाँव किनारे वाले जंगल काटे जा रहे हैं!
कई पेड़ मारे जा चुके हैं, नन्हे-मुन्ने पेड़ों को भी नहीं छोड़ा जा रहा है।”

अंबू डरते हुए बोला—“यह तो बहुत बुरा हो रहा है। क्या उन मानवों को यह मालूम नहीं कि हम पेड़ ही उन्हें फल, सब्ज़ियाँ, अन्न और प्राणदायी हवा देते हैं! और देखो उनकी नासमझी कि हमें ही काट रहे हैं।”

थोड़ी ही देर में यह बात जंगल में पेड़ों के बीच आग की तरह फैल गई।

उधर नदी किनारे से बबूल कटिला दौड़ता हुआ अपने दोस्तों के साथ अंबू के पास आ रहा था।
अंबू को देखते ही बबूल कटिला गुस्से से लाल होते हुए बोला—
“अंबू भाया! मैं उन सारे मानवों को अपने काँटों से छेद डालूँगा। बहुत कुछ सहन कर लिया है हमने। अब लड़ाई आर-पार की होगी।”

बबूल कटिला और उसके दोस्तों ने एक स्वर से चिल्लाया—
“हाँ-हाँ! आर या पार!”

पर अंबू आम और जंबू जामुन बहुत समझदार थे। उन्होंने बबूल कटिला को समझाकर शांत किया और शाम को सब पेड़ों की बैठक बुलाने की बात कही।

शाम को अंबू आम के घर के पास जंगल के सारे पेड़ों की बैठक शुरू हुई।
पीपलू दादा ने बोलना शुरू किया—
“यह सच है कि हम पेड़ों की वजह से ही मानव खुशहाल और जीवित है।
मानव तो बहुत समझदार प्राणी होते हैं, पर ऐसा वह क्यों करता है, यह समझ से बाहर है…?”

बबूल कटिला तपाक से बोल उठा—
“मैं तो कहता हूँ, आर या पार की लड़ाई लड़ी जाए। मैं अच्छी तरह जानता हूँ इन मानवों को। ये लातों के दुश्मन, बातों से नहीं मान सकते!”

सभी पेड़ों ने भी बबूल कटिला की बातों पर सहमति जताई।
सभी पेड़ों का मानना था कि अब बिना लड़े कोई बात बनने वाली नहीं है।

अंबू आम और जंबू जामुन को भी बबूल कटिला की बात बहुत हद तक सही लगी।
अंबू आम ने कहा—“जब सभी को यह विचार पसंद है, तो हम भी लड़ने के लिए तैयार हैं।”

बरगद मियाँ ने कहा—“अगर लड़नी ही है तो हम एक अनोखी लड़ाई लड़ेंगे, जो इन मानवों ने कभी लड़ी थी।
हम जंगल के सभी पेड़ जंगल सत्याग्रह की लड़ाई लड़ेंगे।”

“जंगल सत्याग्रह! जंगल सत्याग्रह!”—सभी अचरज में पड़ गए।

अंबू आम ने पूछा—“यह क्या होता है दादा जी?”

पीपलू दादा ने कहा—
“तो सुनो… सत्याग्रह बिना हिंसा किए विरोध करना है।
हम उपवास करेंगे। बिना खाए-पिए हम अपने आप को कष्ट देकर उन मानवों का विरोध करेंगे।
जब हम खाना-पीना छोड़ देंगे, तो हमारी पत्तियाँ मुरझा जाएँगी, फूल और फल बनना बंद हो जाएँगे, शाक-सब्ज़ियाँ सूख जाएँगी।
फल यह होगा कि मानव वायु और भोजन के लिए तरस जाएगा… तब उन्हें हमारी कीमत समझ आएगी।”

जंबू ने कहा—“ऐसे तो हम मर जाएँगे, दादा जी।”

तब दादा जी ने कहा—
“हमें केवल जीवित रहने के लिए ही भोजन करना है।
हमें ध्यान रखना होगा कि पत्तियाँ, फूल और फल सत्याग्रह तक हममें कभी न आने पाएँ।”

जंगल के सभी पेड़ों को यह बात समझ आई और सबने सत्याग्रह करने का फैसला ले लिया…

हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़

Monday, 25 August 2025

भाई बहन

कुछ समय को
आत्मसात कर लेना चाहिए 
और उस समय को खासकर 
जिस समय के साथ
अक्सर लुका छिपी 
हम खेलते रहे
कभी वह समय
उस पाले में होता
कभी वह समय
इस पाले में होता
पर उस एक समय के बीच में 
बहुत सारा समय
नोक-झोंक लिए रहता था
और उस नोंक-झोंक के बीच
एक चांटा और गाली 
रहतीं थी
और उस चांटा और गाली के बीच
भाई बहन का
प्यार रहता था
कितना सच्चा था 
वह प्यार
जिसमें 
लड़ाइयां थीं नोंक-झोंक थी
पर एक दूसरे के लिए
मर मिटने का 
संकल्प भी था.....

हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़ 

Sunday, 24 August 2025

खटर-खटर


खटर-खटर

लंबी चोंच वाली
चिड़िया आती है
और दिन भर करती है
खटर- खटर, खटर- खटर

जाने उस पेड़ पर
क्या खोदती है
बस खोदती ही जाती है
खटर- खटर , खटर-खटर 

तना सूखा कठोर है
पत्ते हैं न  फल हैं
फिर भी रोज आकर करती है
खटर -खटर ,खटर -खटर

मैनै दादी से पूछा
वो बता रही थी
चिड़िया घर बना रही है
खटर -खटर, खटर -खटर।

हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़ 
श्रेणी - अतुकांत

Friday, 22 August 2025

बच्चे

जब हम बाल शिक्षण की बात करते हैं ,तो हमारे मन में एक सवाल उत्पन्न होता है। आखिर में ये बाल शिक्षण क्या है ? यह बाल शिक्षण कैसे होना चाहिए,बाल शिक्षण की क्या - क्या सीमाएं हो सकती है ?  जब हम बच्चों को शिक्षण से जोड़ते हैं या जोड़ने का प्रयास करते हैं और बच्चों का विश्लेषण करते हैं तब हमें पता चलता है की ,प्रायः-प्रायः सभी बच्चे एक दूसरे से भिन्न हैं और इतना भिन्न है की एक के लिए बनाया गया मनोविज्ञान , अध्यापन  प्रणाली और उससे संबंधित पैंतरे दूसरे के लिए बिल्कुल ही भिन्न हो जाते हैं ,अन्य बच्चे उस खाचें में बैठते ही नहीं ‌।हमारी योजनाएं समग्र रूप से हर बच्चे के लिए काम ही नहीं करती,और तब हमारी योजनाएं धरी की धरी रह जाती है।
प्रश्न यह उठता है कि आखिर औसतन रुप से इन बच्चों को उनके अनुकूलन की परिधि में दक्षता हासिल करने के लिए किस तरह का सुविधा जनक वातावरण तैयार किया जाय।जिससे वह बच्चा अपने बाहरी अनुकूलन  की दशाओं और स्कूली वातावरण की अनुकूलन दशाओं में सामंजस्य स्थापित कर सके ! मैंने यह भी देखा है ,ज्यादातर सुविधा जनक वातावरण बच्चों को आकर्षित तो करते हैं !पर वह पानी में लकीर खींचने जैसा होता है।
(सुविधा जनक वातावरण से यह आशय है कि हमने जिसमें शिक्षक ,पालक,और शिक्षा से जुड़े हुए शिक्षाविदों ने यह समझकर  कि यह वातावरण बच्चों के लिए उपयुक्त है , ज्यादातर वातावरण का निर्माण कर लिया है यही बच्चों के लिए घातक साबित हो रहा है)
तो क्या हम वातावरण तैयार करने में गलती करते हैं ,यह भी एक लाजमी प्रश्न है?
 शिक्षक इसी काम के लिए व्यवसायिक तौर पर शिक्षा से जुड़ा हुआ है,और यह वातावरण शिक्षक की व्यवसायिक कार्यकुशलता और बच्चों की पूर्व और वर्तमान अनुकूलन की दशाओं के सामंजस्य पर निर्भर कर सकती है।
वातावरण तैयार करने में दो चीज़ें महत्वपूर्ण हो सकतीं हैं
एक तो नया वातावरण जिसमें वह प्रवेश करने वाला है ,और उस वातावरण में अनुकूलन की सीमाएं ?
और बच्चे का वर्तमान वातावरण जिसमें वह अनुकूलित है,में अनुकूलन की सीमायें
हमें यह भी ज्ञात होना चाहिए एक बच्चा कई तरह के वातावरण में एक साथ रहता है अनुकूलित होकर, पर एक शिक्षण ही है जिसे हम बच्चों के साथ अनुकूलित करने के लिए नि:सहाय अवस्था तक पहुंच जाते हैं?
इसका बुनियादी फर्क है और वह फर्क यह है की बच्चा कई तरह के वातावरण में स्वयं अनुकूलित हुआ रहता है और जब शिक्षण की बात आती है तो हम बच्चों को अनुकूलित करना चाहते हैं l

और फिर एक खेल शुरु होता है अवधारणा से खेलने की जिसे ज्यातर बच्चे खेलते हैं और सिक्सर भी लगाते हैं ,

Thursday, 21 August 2025

निर्विचार

       निर्विचार 

मैं जागना चाहता हूं 
आसमान के नीचे
और धरती के ऊपर 
बीच निर्वात में
तारों को नजदीक से
और धरती को दूर से
देखना चाहता हूं 
मैं छूट जाना चाहता हूं 
उस नाम से जिसमें
ग्रहों और नक्षत्रों की
छाया हो
मैं छूट जाना चाहता हूं
उस ज्ञान से
जिसे किसी ने
प्रतिष्ठित किया हो
मैं मुझ पर
स्वंय को
स्थापित होने देना 
चाहता हूं
उस तरंग के साथ
आंदोलित होना चाहता हूं
जो मुझमें पूर्ण रूप में 
सागर की तरह व्याप्त है
मैं उस रौशनी के साथ
चलना चाहता हूं
जो विचारों को लांघकर
उस पथ तक ले जाए
जहां मैं
निर्विचार हो पाऊं....

हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़