जंगल सत्याग्रह
एक आम का पेड़, जंगल के बीचों-बीच रहता था। अंबू उसका नाम था।
सब पेड़ों से उसकी दोस्ती थी। पेड़ों से बातें करना, हँसना उसे अच्छा लगता था।
अंबू आम का पेड़ दूसरे पेड़ों के घर भी घूमने जाता था।
अंबू जब अपने पेड़ दोस्तों के घर जाता तो ताज़ा मीठा आम भी ले जाता और बड़े प्यार से अपने दोस्तों को खिलाता।
सभी दोस्त मीठे रसीले आम की प्रसंसा करते और अंबू मन ही मन ख़ुशी से झूम उठता।
जंगल के सारे दोस्त जब अपने दोस्तों के घर जाते, तो अपना मीठा फल भी ले जाते और अपना प्रेम जताते।
यह प्रेम कितना अच्छा था न!
जंगल के सारे पेड़ बहुत सारा फल मानवों और अन्य जीवों के लिए भी छोड़ देते थे और खुश होते थे।
एक दिन अंबू सो रहा था, तभी आवाज़ आई—खट-खट।
अंबू ने दरवाज़ा खोला तो देखा कि जंबू, जामुन का पेड़, हाँफ रहा है।
अंबू बोला—“अंदर आओ दोस्त।”
जंबू बोला—“न-न-न… आने का समय नहीं है।”
अंबू घबरा गया—“आख़िर क्या हुआ? बताओ न…”
जंबू बोला—“गाँव किनारे वाले जंगल काटे जा रहे हैं!
कई पेड़ मारे जा चुके हैं, नन्हे-मुन्ने पेड़ों को भी नहीं छोड़ा जा रहा है।”
अंबू डरते हुए बोला—“यह तो बहुत बुरा हो रहा है। क्या उन मानवों को यह मालूम नहीं कि हम पेड़ ही उन्हें फल, सब्ज़ियाँ, अन्न और प्राणदायी हवा देते हैं! और देखो उनकी नासमझी कि हमें ही काट रहे हैं।”
थोड़ी ही देर में यह बात जंगल में पेड़ों के बीच आग की तरह फैल गई।
उधर नदी किनारे से बबूल कटिला दौड़ता हुआ अपने दोस्तों के साथ अंबू के पास आ रहा था।
अंबू को देखते ही बबूल कटिला गुस्से से लाल होते हुए बोला—
“अंबू भाया! मैं उन सारे मानवों को अपने काँटों से छेद डालूँगा। बहुत कुछ सहन कर लिया है हमने। अब लड़ाई आर-पार की होगी।”
बबूल कटिला और उसके दोस्तों ने एक स्वर से चिल्लाया—
“हाँ-हाँ! आर या पार!”
पर अंबू आम और जंबू जामुन बहुत समझदार थे। उन्होंने बबूल कटिला को समझाकर शांत किया और शाम को सब पेड़ों की बैठक बुलाने की बात कही।
शाम को अंबू आम के घर के पास जंगल के सारे पेड़ों की बैठक शुरू हुई।
पीपलू दादा ने बोलना शुरू किया—
“यह सच है कि हम पेड़ों की वजह से ही मानव खुशहाल और जीवित है।
मानव तो बहुत समझदार प्राणी होते हैं, पर ऐसा वह क्यों करता है, यह समझ से बाहर है…?”
बबूल कटिला तपाक से बोल उठा—
“मैं तो कहता हूँ, आर या पार की लड़ाई लड़ी जाए। मैं अच्छी तरह जानता हूँ इन मानवों को। ये लातों के दुश्मन, बातों से नहीं मान सकते!”
सभी पेड़ों ने भी बबूल कटिला की बातों पर सहमति जताई।
सभी पेड़ों का मानना था कि अब बिना लड़े कोई बात बनने वाली नहीं है।
अंबू आम और जंबू जामुन को भी बबूल कटिला की बात बहुत हद तक सही लगी।
अंबू आम ने कहा—“जब सभी को यह विचार पसंद है, तो हम भी लड़ने के लिए तैयार हैं।”
बरगद मियाँ ने कहा—“अगर लड़नी ही है तो हम एक अनोखी लड़ाई लड़ेंगे, जो इन मानवों ने कभी लड़ी थी।
हम जंगल के सभी पेड़ जंगल सत्याग्रह की लड़ाई लड़ेंगे।”
“जंगल सत्याग्रह! जंगल सत्याग्रह!”—सभी अचरज में पड़ गए।
अंबू आम ने पूछा—“यह क्या होता है दादा जी?”
पीपलू दादा ने कहा—
“तो सुनो… सत्याग्रह बिना हिंसा किए विरोध करना है।
हम उपवास करेंगे। बिना खाए-पिए हम अपने आप को कष्ट देकर उन मानवों का विरोध करेंगे।
जब हम खाना-पीना छोड़ देंगे, तो हमारी पत्तियाँ मुरझा जाएँगी, फूल और फल बनना बंद हो जाएँगे, शाक-सब्ज़ियाँ सूख जाएँगी।
फल यह होगा कि मानव वायु और भोजन के लिए तरस जाएगा… तब उन्हें हमारी कीमत समझ आएगी।”
जंबू ने कहा—“ऐसे तो हम मर जाएँगे, दादा जी।”
तब दादा जी ने कहा—
“हमें केवल जीवित रहने के लिए ही भोजन करना है।
हमें ध्यान रखना होगा कि पत्तियाँ, फूल और फल सत्याग्रह तक हममें कभी न आने पाएँ।”
जंगल के सभी पेड़ों को यह बात समझ आई और सबने सत्याग्रह करने का फैसला ले लिया…
हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़