Wednesday, 26 April 2017

दोहा

बस्तर रोता है सिसक,रोज देख अब लाश।

खून खराबे से हुआ,अमन चैन का नाश।।

कोयल की वाणी लगे,दुखियारी के बोल।

ममता की छाती फटी, मौत बजाती ढोल।।

महुआ की रौनक गई, झड़ा आम से बौर।

पत्ते सहमे से लगे,हवा बही कुछ और।।

बम के फल लगते जहाँ,पेड़-पेड़ पर आज।

धरती फटती सी लगे ,तड़के जैसे गाज।।

नेता सब झूठे लगे,करते सत्ता भोग।

पल पल मरते हैं यहाँ,भोले भाले लोग।।

डरा डरा करते रहे,सत्ता सुख के काज।

माओवादी ये बता,क्यूँ यह रावण राज।।

कुर्बानी कब तक चले,कब तक ममता रोय।

मारो चुन चुन के सभी,हत्यारा जो होय।।

दोहे

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा

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