Wednesday 6 April 2016

गज़ल

दो चोटी की छोटी सी किलकारी है,
घर द्वारे आंगन मे इक फुलवारीं है।

गुड्डे गुड़ियों संग इतराती परीयोँ सी,
हंसते खिलते झूमते इक फुलवारी है।

घरौंदे पैर पर रेत की परवाह नही करती,
वो लहरों पर हंसती इक फुलवारी है।

मम्मी पापा की नकचढ़ी दुल्हन प्यारी है,
दादा दादी की वो इक बसंत फुलवारी है।

इठलाकर बलखाकर सज़दे मे रोती है,
तेरी मेरी बेटी गुलाबों की फुलवारी है।

घर से जब ससुराल डोली पर गुजरती है,
हेमंत तब भी बेटीयां  मां बाप की फुलवारी है।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

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