Wednesday 6 April 2016

गज़ल

जिंदा लाशों के बीच अब रहा नही जाता,
हैवानियत के शहर मे अब रहा नही जाता।

इंसानियत बेचकर तमाम लोग दागदार है,
खुदगर्जी के शहर मे अब रहा नही जाता।

मतलबी फरेबीयों की यहां बड़े बड़े दुकान है, मजहबीयों के शहर मे अब रहा नही जाता।

यहां लोग खरीदे  बेचे जाते है किमत देकर,
जल्लादों के शहर मे अब रहा नही जाता।

बिगड़ी है तस्वीरें जो और बिगड़ती नजर है ,
तिश्नगी शहर मे अब रहा नही जाता ।

दिल उब गया है हेमंत इस शहर की दास्तां मे,
बेवफाई के इस शहर मे अब रहा नही जाता।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिरा
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

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