ये कौन खंज़र चला रहा है,
रिश्तों पर खून लगा रहा है।
चराग जो हवावों मे जलते रहे,
कौन फूंक मारकर बूझा रहा है।
ये कैसी घड़ी आन पड़ी या खुदा,
मेरा और तेरा शहर बता रहा है।
मज़हब परस्ती का इस तरह कहर है,
कोई भारत कोई हिंद बना रहा है।
सियासत के बाज़ार मे देखो तो,
वो अपने खोंटे सिक्के चला रहा है।
खुद को खुद ही परेशा करने वाले,
अपना ही घरबार जला रहा है।
सैयाद इस दौर -ए-जहां भी "हेमंत"
उड़ते परीन्दों को सता रहा है।
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
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