Saturday 23 December 2017

बरवै छंद-फिर फागुन आया है

है तन मन बौराया,भीगा अंग।

फिर फागुन आया है,लेकर रंग।

कलरव करते हैं खग,मगन अपार।

बहती है रह रह कर,मस्त बयार।

ना गरमी ना जाड़ा,सम है ताप।

मौसम इतना अच्छा,मिटा संताप।

कोयल कूके कुहु कुहु,देखो आम।

बौराई  है  फिर  से,हर इक शाम।

मधुबन लागे आँगन,हर घर द्वार।

गाँव  गली  चौराहा , महक अपार।

खिल उठे हैं टेसू,पृथ्वी भाल।

पुष्प का बन गया हो,जैसे ताल।

उद्विग्न पुष्पधन्वा,रति बेहाल।

है मृगमद यह कैसा,हृदय रसाल।

भ्रामर करते उपवन,भन भन गान।

लगी फूल खिलने सुन,सुमधुर तान।

प्रकृति हुई मन भावन,खुशी अनंत।

वन-उपवन हर आँगन, है हेमंत।

हेमंत मानिकपुरी(साहित्यकार)

भाटापारा छत्तीसगढ़

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