Monday 5 December 2016

ग़ज़ल

१२२२/१२२२/१२२२

दवा बीमार को  मरने   नही देती,

दिवारें छत कभी गिरने नही देती।

वो तूफानो मे कब का ढह गया होता,

तने शाखाओं  को  हिलने  नही  देती।

गज़ब हिम्मत है उस बूढ़ी का सच यारों,

कमर इस उम्र  मे  झुकने   नही     देती।

थी चिठ्ठीयों का अपना ही मज़ा सच मे,

ये जो है फोन खत लिखने  नही   देती।

वो भी हँसता मगर ये हो नही पाया,

गरीबी बचपना खिलने नही   देती।

नदी को पार करना चाहता हूं मै,

ये लहरें नाव को चलने नही देती।

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़


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