2122/1222/1222
खत पुराने सभी मेरा जला देना
वस्ल की हर तलब दिल से मिटा देना
मैं तो इक लम्हा था फिर रूकता कैसे
वक्त की बेवफ़ाई थी भुला देना
ज़िंदगी में अगर ग़म भी आ जाये तो
ग़म में रोना नही बस मुस्कुरा देना
मै किसी भी के मज़हब का नही यारों
मज़हबी ना कभी मुझको बता देना
गम नही मैं अगर मर भी गया तो सच
कुछ जला देगा वो कुछ तुम दबा देना
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़
वस्ल-मिलन ,संयोग
No comments:
Post a Comment