परत परत खुल जा रहा,बाबाओं का राज।
पूज रहे जिसको सभी,निकले चीड़ी बाज।।
हीरो को भी दे रहे,पल भर में ये मात।
बाहर योगी सा बने,अन्दर मैली घात।।
धरम, करम ,पैसा, सखा,पावर भी हैं साथ।
घी में डूबे हैं सभी,दोनो इनके हाथ।।
मठ इनका होता हरम,करम करे ये भोग।
अबला नारी का करे,ये वहसी संभोग।।
भोगी आशा राम है,भोगी राम रहीम।
रामपाल भी कम नही,ये सब मीठे नीम।।
अंध भक्त को चाहिए,सब कुछ को ले तोल।
फिर गुरु की सेवा करे,समझ जाय जब मोल।।
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़
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