Thursday 10 August 2017

दोहा

शुक्ल पाख नवमी लगन,सावन महिना आय।
हरियर हरियर भोजली,बहिनी मन सिरजाय।।

धरती मा पानी गिरय,होवय बढ़िया धान।
इही आस ले के सबो,करय भोजली गान।।

धान गहूँ कोदो चना,चरिहा भर लहराय।
सब बहिनी सेवा करय,कतका मन ला भाय।।

दशमी के दिन भोजली,पीका फूटे तोर,
जब आए एकादशी,पाना निकले कोर।।

रूप दुवासे पींवरा,जइसे चमकय सोन।।
लहर लहर लहरा करे,देखव तो सिरतोन।

थाल फूल दीया सजे,पूजा के बड़ रीत।
गावय सेवा सब जने,देबी गंगा गीत।।

तेरस के दिन भोजली,रूप अनोखा पाय।
नान्हेपन ला कर बिदा,तरुनाई मा जाय।।

तिथि चउदस के दिन करय,पूजा पाहुन सार।
जम्मों भक्तन हे कहय,मात करव उपकार।।

पुन्नी के दिन माँ चलय,अपन सार निज धाम।
बहिनी मन बोहे रहय,आँसू अँचरा थाम।।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़

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