मैं विस्थापित कर देना चाहता हूं
अपने आप से
स्थापित शब्द
ये स्थापित शब्द
मुझे मेरी चेतना से
अलग कर देते है
स्थापित शब्द अपने विचारों को
मेरी आत्मा में
केवल और केवल
लादना चाहते है
मैं किसी स्थापित शब्द के
दृष्टिकोण से सोचकर
उस सोच के साथ
अपना स्थापित सोच
नहीं बना सकता
और क्यों बनाऊं ?
मै भी उस बादल को
महसूसना चाहता हूं
जो रात के अंधेरे में
पत्तियों पर ओस की बूंदें छोड़ जाता है
मैं उस नदी के साथ
बहकर जानना चाहता हूं
नदी का संघर्ष
मैं उस पर्वत से मिलना चाहता हूं
जिसका विशाल शरीर ऊपर पहुंचते-पहुंचते
एक सुई के नोक जैसा हो जाता है
मैं कोलतार की सड़कों पर
भरी दोपहरी में
नंगे पांव चलना चाहता हूं
और सुनना चाहता हूं
जलती हुई सड़कों पर
गरीबी के गीत
मैं महुआ बिनती स्त्री को
उसके पांव से लेकर उसके घर तक
सूंघना चाहता हूं
मैं साइकिल और खटिया से
ढोई जा रही लाशों के गांवों को
तथाकथित आधुनिक सभ्यता में
खोजना चाहता हूं
पर उन
स्थापित शब्दों के साथ नहीं
जहां मेरे शब्दों की मौलिकता
खत्म हो जाती है
वरन उन शब्दों के साथ
जो शब्द मुझे
मेरी आत्मा से बात करने दे!!
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
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