Saturday, 11 October 2025

पूरा घर

आज चूल्हा बहुत खुश है
खुश इतना कि
पहले से ही उसने
उपले और लकड़ियों को
अपने पास में 
इकठ्ठा कर लिया है
और घर के डेकचियों को
फुसफुसा आया है
कि आज तुझमें दाल बनेंगे
और तुझमें भात 
कड़ाही से भी कह आया है
देखना आज तुझमें
कोई न कोई तरी वाला चटपटा
साग बनेगा
घर की दीवारें उछल-उछल कह रहे हैं
इस बार जरूर छुही के साथ
हम भी
टेहर्रा रंग से पोते जाएंगे
पैरा की छप्परें-
खपरैलों का संसार देखने लगी है
घर से लगा कोठार
पहले से ही जीमीकंद का डंठल
खीरा, तोरई ,फूट और
बरबट्टी के सूखे नारों को काट कर
बिलकुल दुल्हे की तरह सज गया है
और पल -पल
बैलगाड़ी का इंतजार किया जा रहा है 
पर जब तिहारू
खेत से घर आया
पसीने से तर - बतर था
सिर पर बंधे हुए सफेद गमछा को
निकाला और 
घर की आंट पर  हताश बैठ गया
इस बार भी धान की फसल
हर बार की तरह
खेत में ही नाप लिए गये थे
तिहारू खेत से
खाली हाथ घर लौटा था
कोठार से लेकर पूरा घर
तिहारू को देखकर
भौंचक्का रह गया
घर को समझने में देर न लगा
और झट ही
उस घर से एक बहुत बूढ़ा घर निकला
तिहारू को गले लगाते हुए बोला
कोई बात नहीं बेटा
तुमने बहुत मेहनत की
इस बार भी....
ये कथन सुनते ही
तिहारू के संग पूरा घर
एक बार फिर 
भूख और इच्छाओं को भूलकर
खुशी से झूम उठा....

हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़

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