सूरज निकलने से पहले
सुबह चार बजे ही
'सुबह' उठ जाती है
पोंछा बर्तन करती है
घर आंगन को
झाड़ू करती है
चूल्हा जलाती है
पूरे घर के लिए
खाना बनाती है
और फिर
बच्चों के स्कूल
जाने के लिए
काम पर
जाने वाले
अपनी मरद* के लिए
और खुद के लिए
टिफिन बांधती है
फिर 'सुबह'
लकर-धकर*
नहाती है
और
निकल पड़ती है
अपनी आंचल को
समेटती हुई
अपनी तीन्नी को
खोंसती हुई
हंसते हंसते
अपना टिफिन लेकर
अपने गीले बालों
को सड़क पर
फटकारती हुई
तेज कदमों से
सुबह सुबह ही
काम पर.....
हेमंत कुमार'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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