"मैं आलौकिक से सोचता हूं"
१------मैं बाहरी दुनिया को देखता रहा
केवल अपने लिए
उसी के अनुरूप स्वंय को
ढालने की कोशिश करता रहा
इस तरह मैं स्वंय में
उलझकर मात्र रह गया
मेरा होना एक तरह से
न होने की तरह रहा
भीतर की तरफ
ध्यान ही नहीं गया
और एक दिन फिर
नि:शब्द हो गयी आत्मा
चलन से बाहर हो गये अंग
अंतत:जला दिया गया आग में
या मिट्टी में खपा दिया गया
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़