Friday, 4 April 2025

"मैं आलौकिक से सोचता हूं"

"मैं आलौकिक से सोचता हूं"

१------मैं बाहरी दुनिया को देखता रहा
केवल अपने लिए
उसी के अनुरूप स्वंय को
ढालने की कोशिश करता रहा
इस तरह मैं स्वंय में
उलझकर मात्र रह गया
मेरा होना एक तरह से
न होने की तरह रहा
भीतर की तरफ
ध्यान ही नहीं गया
और एक दिन फिर
नि:शब्द हो गयी आत्मा
चलन से बाहर हो गये अंग
अंतत:जला दिया गया आग में 
या मिट्टी में खपा दिया गया

हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़ 



Wednesday, 2 April 2025

जीवन और मृत्यु

जीवन और मृत्यु 


माता और पिता के
मिलने से 
एकाकार हुआ
फिर गर्भ में ही
उनसे अलग होता रहा
एक दिन 
पूर्णतः अलग हो गया
और स्वतंत्र हो गया
यही विन्यास है!!!
तो क्या विन्यास ही
जीवन है..???
और एकाकार होना 
मृत्यु है।



हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़ 

तू जल तो सही


तू जल तो सही


तू जल तो सही
तू खप तो सही

पर्वत भी नतमस्तक होगा
सागर भी मीठा होगा
जीवन की जड़ता में
गोबर जैसे सड़ तो सही

दंभ ढले सड़कों से
वापस मुड़
पथरीली राहों पर चल
छाले हो तो सही

किसानों की पीड़ा में
अपना नीर बहाना सीख
बर्रे की खेतों में जाकर 
प्यारे चल तो सही

नहाया कर धूलों से
मिट्टी से बतियाया कर
कामगार के कपड़ों सा
दरक कर फट तो सही

तू जल तो सही
तू खप तो सही

हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़