Tuesday 16 July 2024

झोपड़ी और बरसात

रोते-रोते    झोपड़ी    ,   जागी  पूरी रात।
आफत ही तो आ गई, खूब  हुई बरसात।।

महलों में  चमका   गई , वर्षा   अपना नूर।
धनिकों के प्याले भरे   , बारिश के अंगूर।।
वर्षा    यूँ   देती  रही  , महलों को सौगात।
इधर  गरीबी  ने सहे , बारिश के आघात।।
रोते-रोते   झोपड़ी    ,  जागी   पूरी   रात।
आफत ही तो आ गई, खूब  हुई बरसात।।


मद में मस्त पलंग था, भीग रहा था खाट।
पर्स  मियाँ छतरी लिए , घूम रहा था हाट।।
महलों  ने  फोटो  लिए , वर्षा सँग इफरात।
किस्मत छप्पर का उड़ा , जैसे कोई पात।।
रोते-रोते     झोपड़ी ,   जागी    पूरी   रात।
आफत ही तो आ गई, खूब  हुई बरसात।।

सहमा  सा छप्पर रहा, पकड़े-पकड़े बाँस।
बारिश  इतनी  निर्दयी, लेती एक न श्वाँस।
मिट्टी, गारे कब तलक, सहे   मेघ   प्रपात।
लड़ते-लड़ते नींव ने , माना आखिर मात।।
रोते-रोते     झोपड़ी ,   जागी    पूरी  रात।
आफत ही तो आ गई, खूब  हुई बरसात।।


डगमग-डगमग झोपड़ी, करते गिरी धड़ाम।
हड्डी टूटी , सिर फटा , पल में  काम तमाम।।
चौका, बर्तन दब  गए, करुण हुए  हालात।
पर महलों ने की नहीं, दया  धर्म  की बात।।
रोते-रोते   झोपड़ी    ,   जागी   पूरी   रात।
आफत ही तो आ गई, खूब  हुई  बरसात।।


हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
7000953817

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