पता है
जैसे
किराने की दुकान
हर चौराहे पर
होती है
तुम्हारा व्यापार
हो रहा है
तुम केवल
एक किराने की
व्यापार का सामान
हो गये हो
कोई तुम्हें खरीदता है
कोई तुम्हें बेचता है
कोई तुम्हे प्रायोजित करता है
तुम्हारी दोहे साखियां
सब बिक रहीं हैं
तुम्हारा एक एक कहा
पंडालों पर बेची जा रही है
सबसे बड़ी बात
तो यह है
तुम्हारे नाम से भी
पंथ बना लिए गये हैं
तुम कई तथाकथित
संतो के रूप में
अवतरित कर लिए गये हो
तुम्हें मूर्ति बनाकर
पूजा जा रहा है
बेचा जा रहा है
तुम बिक रहे हो
धड़ाधड़
क्या तुम्हें पता है
"कबीर"
जो तुम कभी नहीं बनना
चाहते थे
तुम वही बना लिए गये हो....
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
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