Thursday, 19 June 2025

कबीर

पता है 
जैसे
किराने की दुकान
हर चौराहे पर
होती है
तुम्हारा व्यापार 
हो रहा है
तुम केवल
एक किराने की
व्यापार का सामान
हो गये हो
कोई तुम्हें खरीदता है
कोई तुम्हें बेचता है
कोई तुम्हे प्रायोजित करता है
तुम्हारी दोहे साखियां 
सब बिक रहीं हैं
तुम्हारा एक एक कहा
पंडालों पर बेची जा रही है
सबसे बड़ी बात 
तो यह है
तुम्हारे नाम से भी
पंथ बना लिए गये हैं
तुम कई तथाकथित 
संतो के रूप में 
अवतरित कर लिए गये हो
तुम्हें मूर्ति बनाकर
पूजा जा रहा है
बेचा जा रहा है
तुम  बिक रहे हो
धड़ाधड़
क्या तुम्हें पता है
"कबीर"
जो तुम कभी नहीं बनना
चाहते थे
तुम वही बना लिए गये हो....

हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़ 

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