रोते-रोते झोपड़ी , जागी पूरी रात।
आफत ही तो आ गई, खूब हुई बरसात।।
महलों में चमका गई , वर्षा अपना नूर।
धनिकों के प्याले भरे , बारिश के अंगूर।।
वर्षा यूँ देती रही , महलों को सौगात।
इधर गरीबी ने सहे , बारिश के आघात।।
रोते-रोते झोपड़ी , जागी पूरी रात।
आफत ही तो आ गई, खूब हुई बरसात।।
मद में मस्त पलंग था, भीग रहा था खाट।
पर्स मियाँ छतरी लिए , घूम रहा था हाट।।
महलों ने फोटो लिए , वर्षा सँग इफरात।
किस्मत छप्पर का उड़ा , जैसे कोई पात।।
रोते-रोते झोपड़ी , जागी पूरी रात।
आफत ही तो आ गई, खूब हुई बरसात।।
सहमा सा छप्पर रहा, पकड़े-पकड़े बाँस।
बारिश इतनी निर्दयी, लेती एक न श्वाँस।
मिट्टी, गारे कब तलक, सहे मेघ प्रपात।
लड़ते-लड़ते नींव ने , माना आखिर मात।।
रोते-रोते झोपड़ी , जागी पूरी रात।
आफत ही तो आ गई, खूब हुई बरसात।।
डगमग-डगमग झोपड़ी, करते गिरी धड़ाम।
हड्डी टूटी , सिर फटा , पल में काम तमाम।।
चौका, बर्तन दब गए, करुण हुए हालात।
पर महलों ने की नहीं, दया धर्म की बात।।
रोते-रोते झोपड़ी , जागी पूरी रात।
आफत ही तो आ गई, खूब हुई बरसात।।
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
7000953817