नदियाँ नाले ताल के , बिगड़ गये हैं ताल।
बरस रहे हैं धूप जी , बनकर जैसे काल।।
सूरज के आक्रोश से , है घड़ा परेशान।
एसी कूलर फ्रीज की, निकल गई है जान।।
पशु -पक्षी अरु जानवर,क्या मानव की जात।
भुट्टे जैसे भुन रहे , पड़-पड़-पड़ दिन-रात।।
गर जाना हो स्वर्ग तो , बाहर निकलो यार।
लू गलियों में घुम रहा , लिये मौत उपहार।।
जगह जगह अवरक्त का , अनदेखा है धार।
सड़कें नागिन रूप धर ,रोज रहीं फुफकार।।
गरमी से अकबक हवा ,खोजे शीतल छाँव।
नही मिला ! पर एक भी ,तरुवर वाला गाँव।।
न मानेंगे बिना पिये , सूर्य देव अब खून।
माई-माई में मई , और कटेंगे जून।।
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़