Friday 2 April 2021

नवगीत


          मैं   सावन   बरखा  बन  बरसूँ
          तुम सुर  गाओ  मल्हार   पिया


तन  हो जैसे सूखी लकड़ी
मन   को बेधे बिरह कटारी
आओ  भी  देखो आँखों में
पतझड़ सा है मौसम भारी


            युग्म   पत्र   सा तुम बन जाओ
            मैं   हो    जाऊँ   कचनार पिया


मेरे    बिरहा    के गीतो   में
आ  जाए  मद मस्त खुमारी
मदिरा बन छू लो अधरों को
तन-मन  हो  जाए  मतवारी


             दुनिया   की  हर रंग भुलाकर
             तन   मन  दूँ  मैं न्योछार पिया


तुम भर  लो बाँहो मे मुझको
प्रेम  सुधा  रस उर  पाने को
बूढ़ी  आहें  फिर  जग  आई
प्रेम  गीत  मन  बरसाने  को


            मैं    यौवन    की   रंभा   जैसी
            तुम  कुसुमाकर  रतनार   पिया


हेमंत कुमार "अगम"

भाटापारा  छत्तीसगढ़


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