Thursday, 17 April 2025

फूल की पीड़ा

"फूल की पीड़ा"


सुबह खिल भी ठीक से 
नहीं पाती है फूल
और उस फूल के
नृहसंस हत्यारे
उसे बलि का सामान 
समझने वाले
हथियारों से लेश
उसे तोड़ने पहुंच जाते है
फूल सुंदर होतीं हैं
खुशबुओं से भरीं होती है
इसका अर्थ यह तो नहीं
कि उसे अपने 
घरों में फंक्शन के लिए
नेताओं को रिझाने के लिए
मस्जिदों में महकने के लिए
अर्थियों को जीवंत करने के लिए
देवालयों में देवताओं को
प्रसन्न करने के लिए
तोड़ा जाय
और बली चढ़ा दिया जाय
फूल अमूक है
उसे बोलना नहीं आता
हम तो मानव हैं
हमें तो बोलना लिखना पढ़ना समझना
सब कुछ आता है
और सब कुछ जानते हुए
हम जानबूझ कर 
टूट पड़ते हैं
किसी का वंश
उजाड़ने के लिए
इसी लिए 
छोटी छोटी कलियों
और फूलों को तोड़ने 
वालों को
हत्यारा कहने में
कोई अतिशयोक्ति नहीं है.....

हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़ 

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