Friday, 25 April 2025

मेरा गांव


मेरा गांव

मिट्टी के घरों से
जीवन जा चुका है
अस्थि पंजर भी
धीरे -धीरे गलकर
खाक हो चुके हैं
खपरैलें टूटकर
बिखर गयीं है 
अब बरसात गिरता है
तो धड़ाम से गिरता है
कांक्रीट की छत पर
और कांक्रीट की गलियों पर
नीम का पेड़ सूख चुका है
उसके नीचे विराजमान 
'महमाई' देवी को
उसका नया कांक्रीट का
घर मिल चुका है
तालाब में 'पचरियां'
कांक्रीट की हो गयीं हैं
गांव के चारों तरफ
जो 'परिया'थीं
लूट लिए गये हैं
अब गांव की शांति
कांक्रीट की दीवारों
और कांक्रीट की गलियों से
टकराकर टूट जातीं हैं
कांक्रीट की घरों में रहकर 
लोगों की सोच और भावनाएं 
मानो कांक्रीट की
हो गयी है.....

हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़ 




No comments:

Post a Comment