मेरा गांव
मिट्टी के घरों से
जीवन जा चुका है
अस्थि पंजर भी
धीरे -धीरे गलकर
खाक हो चुके हैं
खपरैलें टूटकर
बिखर गयीं है
अब बरसात गिरता है
तो धड़ाम से गिरता है
कांक्रीट की छत पर
और कांक्रीट की गलियों पर
नीम का पेड़ सूख चुका है
उसके नीचे विराजमान
'महमाई' देवी को
उसका नया कांक्रीट का
घर मिल चुका है
तालाब में 'पचरियां'
कांक्रीट की हो गयीं हैं
गांव के चारों तरफ
जो 'परिया'थीं
लूट लिए गये हैं
अब गांव की शांति
कांक्रीट की दीवारों
और कांक्रीट की गलियों से
टकराकर टूट जातीं हैं
कांक्रीट की घरों में रहकर
लोगों की सोच और भावनाएं
मानो कांक्रीट की
हो गयी है.....
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
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