मैं तुम्हारा
साथ देना चाहता हूं
पर सोचता हूं
मेरा साथ पाकर
तुम कहीं तुम्हारी
वास्तविकता खो न दो
डरता हूं
तुम्हारे भीतर जो
लय और ताल पनपेगा
वह मेरे कदमों का ही
प्रतिरूप न हो जाये
तुम्हारी चेतना
कहीं मेरे विचारों का
समर्थन न करने लगे
इस तरह से तो
तुम
मेरी तरह हो जाओगे
फिर तुम्हारे पास
तुम्हारा रहेगा क्या.....
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
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