Wednesday, 28 June 2023

हुआ टमाटर गोल्ड


लाल   टमाटर  जब  हुआ ,सोने  से भी  गोल्ड।
हरी   भरी   तरकारियाँ , हुईं  धड़ाधड़   बोल्ड।।



बैंगन    बुआ   पिचक  गईं , खोया  गोभी रंग।
कद्दू , परवल , ढेंस   भी  , दिखते   हैं  बे-रंग।।
ताजी-ताजी नकचढ़ी, जो थीं कल तक सोल्ड।
हरी  -  भरी   तरकारियाँ  , हुईं धड़ाधड़ बोल्ड।।



बिना  टमाटर  के नही ,   बनता  कोई    झोल।
झोला  मियाँ  उदास  हैं ,बचा  नही  अब  रोल।।
स्टाईलिश   भिन्डी   हुई  ,   देहाती  बन फोल्ड।
हरी -  भरी  तरकारियाँ  , हुईं  धड़ाधड़  बोल्ड।।



गुमसुम   अलसाई   पड़ी , लौकी , तोरी , ग्वाँर।
आलू  , टिन्डा , बीन्स की ,  टेस्ट   हुई   बेकार।।
मुनगा  जी  की नाक को ,लगा रोग अब कोल्ड।
हरी -  भरी   तरकारियाँ  , हुईं  धड़ाधड़ बोल्ड।।



पड़ा   करेला  सोंच में , कटहल   हुआ  डिरेल।
चला   गया   मशरूम   का  , हाई -फाई खेल।।
अरबी    जी   फिसले  पड़े ,पत्ता  गोभी  टोल्ड।
हरी  -  भरी   तरकारियाँ , हुईं  धड़ाधड़ बोल्ड।।



बेचारी   भाजी   कहाँ ,  लागे   हैं   अब  फ्रेश।
पालक ,  चवलाई   हुईं   ,  साहब   देखो क्रेश।।
जीवन  के  बाजार में ,जैसे  सब   कुछ   होल्ड।
हरी -भरी   तरकारियाँ ,  हुईं  धड़ाधड़   बोल्ड।।

रचना

हेमंत कुमार "अगम"

भाटापारा छत्तीसगढ़




Friday, 23 December 2022

कर्म लोक ..दोहा

कर्म लोक है यह जगत,जस करनी तस आय।

जैसा   है गुण बीज  का,  वैसा ही फल पाय।।


इस दुनिया को जानिए,ये है एक सराय।

आना जाना है लगा,समझो यह पर्याय।।


जाओ  गर  उस पार तो ,आए नही खरोंच।

कैसे   खेना   नाव  को , खेने  वाले  सोंच।।


सच्चा  जब  तन  मन रहे,आए नही विकार।

कपड़ा  सादा  हो न हो , सादा  रहे विचार।।


रक्त, देंह सब एक है, एक सभी में जान।

दोहरापन न राखिए,सब हैं एक समान।।



हेमंत कुमार "अगम"

भाटापारा

Sunday, 18 December 2022

सत्य पुरुष बबा घासी दास



सब ला सत रसता बता,करिन बड़ा उपकार।

गुरु    बबा   के गोठ मा, हे  जीवन  के  सार।।


भाई बन जुर-मिल रहव,करव नही अभिमान।

सबके  काया  एक  हे  , सबके  लहू   समान।।


जात-पात के ढोंग ला ,अंतस   ले  दव   बार।

गुरु    बबा   के गोठ मा, हे  जीवन  के  सार।।


दारू गाँजा छोंड़ दव,खावव  झिन  जी मास।

निरमल मन के धाम मा,सत्य पुरुष  के वास।।


मनखे  जिनगी चार दिन ,  करौ  नही बेकार।

गुरु   बबा   के  गोठ मा , हे  जीवन के सार।।


मैं  अड़हा  अँव जान के ,  तारव  हे   सतनाम।

सत्य पुरुष हे आपके, चरण कमल निज धाम।।


तोर   तपोवन   धाम मा  ,  बसे सकल संसार।

गुरु   बबा   के    गोठ मा  ,हे जीवन के सार ।।



हेमंत कुमार "अगम"

भाटापारा छत्तीसगढ़








Monday, 18 July 2022

भ्रष्टाचार


लालच से पैदा हुआ ,आफिस है घर-बार।

तेज धार का मैं छुरा  ,नाम  है  भ्रष्टाचार।।


अधिकारी रिस्वत कहे,दुल्हा  जी उपहार।

लाला जी का ब्याज हूँ,चपरासी का प्यार।।


टेबल के नीचे कभी,कभी प्रसाधन कक्ष।

नोट  बड़े   आराम  से , लेने  में  हूँ  दक्ष।।


कभी सगुन के वक्त में,या अटके जब काम।

लोग  बड़े   अरमान  से  , लेते  मेरा   नाम ।।


जो  दे  वो  हो  कर्ज में,और घिरे अवसाद।

लेने  वाला  प्रेम  से , कहता  मुझे  प्रसाद।।


करतब  मेरा  देख  के , दुनिया  रहती दंग।

अनुकूलन  मुझमें बड़ा,ढल जाता हर रंग।।


सोने  चाँदी  का  महल ,रुपयों  का है सेज।

फिर भी शोषण से मुझे, रहता  नही  गुरेज ।।


झूठ- कपट की खाद से ,बढ़ता सालों-साल।

मुझे तनिक भी ना पचे ,सच्चाई का माल।।


हेमंत कुमार "अगम"

भाटापारा-छत्तीसगढ़








Monday, 21 March 2022

बाल कविता हिन्दी



(1)
काले    काले   प्यारे   बादल।

सबके  राज  दुलारे   बादल।।


जल्दी गड़  गड़ करते आओ।

धरती की तुम प्यास बुझाओ।।


सूरज  की  किरणें  तपतीं हैं।

सड़कें धू-धू  कर जलतीं हैं।।


पीले   पत्ते   पके   पके   से।

पेड़  लगे  हैं  थके  थके  से।।


नदी  ताल  सब  सूखे  सूखे।

प्यासे   प्यासे  भूखे   भूखे।।


बेचारी   चिड़ियाँ  हैं  प्यासी।

छाईं  हैं  सब  तरफ उदासी।।


चौपाया  अब  काँपे  थरथर ।

छायाँ कहाँ रही अब सरपर।।


बाहर जाओ  लू  का  खतरा।

घर  पर  है  दादा  का पहरा।।


हम  बच्चों  की आफत आई।

घर   से   निकलें   कूटे  माई।।


बालकविता

हेमंत कुमार 'अगम'

भाटापारा(नवागाँव)

छत्तीसगढ़

चिड़िया  रानी  चिड़िया  रानी
आओ   खा  लो   दाना  पानी

रोज सुबह तुम उड़कर आना
तोता   मैना    सबको   लाना

मम्मी    देती    बढ़िया    दाना
मिलकर फिर तुम मौज उड़ाना

प्यास लगे  तो  छत पर जाना
पानी  पी  कर  प्यास  बुझाना

धमा-चौकड़ी  अब  ना  ना ना
आओ   मिलकर   गाएँ  गाना

बाल कविता

हेमंत कुमार "अगम"

भाटापारा
3-
आओ आओ खेत चलें
घूमे   नाचे   रहें     भलें


मेढ़ों  पर  हम   इठलाएँ
झूला   झूलें  और  गाएँ


पीले    पीले   से    सरसों
याद    रहेंगे    ये      बरसों



खिला खिला तन मन सारा
मौसम   कितना   है   प्यारा


आओ सपने हम भी बुन लें
चिडियों की कलरव सुन लें



शहरों  से  हैं  ये  न्यारे
खेत-खार कितने प्यारे


4-सुन्दर सुन्दर प्यारे घर
   कच्चे पक्के होते घर

  घाँस फूँस छप्पर वाले
  छत वाले मन भाये घर
 आँगन वाले, फूल खिले
  महके देखो सारे घर


  मिट्टी के काले भूरे
  खपरेलों से छाये घर

  छत के ऊपर छत डाले
  तल्लों वाले ऊँचे घर

  नीले पीले रंग पुते
  चम-चम चमके सारे घर
  मुझको गंदा मत करना
  हम सबको ये बोले घर
                         5

कौंआ काला कोयल काली
पर दोनो की  बात निराली
मीठा मीठा कोयल बोले
सबका तन मन बरबस डोले
काँव काँव कौआ है करता
सुनकर सबका मन है डरता
कोयल शांत लगे मन भावन
अमराई को करती पावन
कौआ रोटी छिन ले जाता
कभी नही बच्चों को भाता

             6
 आओ कछुआ सा बन जायें
 धीरे चलकर मंजिल पायें
सोंच समझ लो फिर बढ़ना जी
हड़बड़ हड़बड़ क्यों करना जी
जो हड़बड़ हड़बड़ करता है
काम सभी गड़बड़ करता है
मन में धीरज पहले धारें
काम करें जब सदा विचारें
सही गलत का करें पहचान
तब पग अपना धरें श्रीमान
               7
है जी मेरा अमीबा नाम
आता नही मै कोई काम
बीमारी मै लेकर आता
मै ना समझूँ कोई नाता
मानव में बीमारी फैलाता
आँतों में जब मै घुस जाता
पानी मे मैं हरपल रहता
अजी नही आँखों से दिखता
छोटा हूँ मैं इतना छोटा
पतला हूँ ना हूँ मै मोटा
पल पल हर पल बढ़ता   हूँ
केवल दुरबिन से दिखता हूँ

               8
बाल कविता

हुआ  सवेरा  आँखें खोलो।

माँजो  दाँतों को मुँह धोलो।।


पैखाना जब तुम कर आओ।

कूदो   भागो   दौड़  लगाओ।।


सैर  सपाटे  से   जब आओ।

बैठो   तुम  थोड़ा  सुस्ताओ।।


साबुन ,पटका लेकर जाओ।

रगड़ रगड़ कर खूब नहाओ।।


आकर कंघी-तेल लगाओ।

हीरो  जैसे तुम बन जाओ।।


बैठ पालथी खाना खाओ।

हँस्ते-गाते  शाला   जाओ।।


हेमंत कुमार "अगम"

भाटापारा छत्तीसगढ़

9

बिल्ली बोली म्याऊँ म्याऊँ
दुध  रोटी  मैं  खाऊँ खाऊँ
काँपे    चूहा   मुझसे   थरथर
बिल से नही निकलता डरकर
लग्न   कुंडली  सही  योग है
मेरा  तो  बस  राज  भोग है
सोफा  मेरा  अजी लखटका
जाते  हैं  सब देख अकचका
तकिया   गद्दा   और  रजाई
पलँग   मेरा    है   हाई-फाई
मै अपने मालिक  सँग सोती
जैसे   हूँ   मैं   उसकी  पोती
बैठ   मजे   से  टी  वी  देखूँ
टी वी देखूँ या खर्राटे ले लूँ
मन चाहे तो लान में टहलूँ
किस्मत पर अपना इतराऊँ
नाचूँ    कूदूँ    खेलूँ     गाऊँ

10
बैगन बैंगनी रंग लगाकर
घर से निकली खाना खाकर
आकर बैठी बीच बाजार
बोली सदा मैं  गूदेदार
मोटी ताजी गोल मटोल
मुझमें देखो कहीं न झोल
ले लो बहना मुझको तोल
मुझमें स्वाद भरा अनमोल
मिक्स बनाओ या हो भर्ता
स्वाद बहुत ही बढ़िया रहता
दही मिलाकर करी बनाओ
चटकारा लेकर सब खाओ
मुझसे मिलता बढ़िया पोषण
ह्रदय रोग का करता शोषण

हेमंत कुमार "अगम"

11
मुर्गे   ने जब  बाँग लगाया
सूरज  दौड़ा  भागा  आया
तब हुआ सवेरा  दिन  निकला
बर्फ तमस की टप-टप पिघला
पूरब    के वह दूर  देश में
जाने रहता किस प्रदेश में
गर्मी  और  प्रकाश   लादकर
फिरता दिन भर तारा पथ पर
जब  धरती  के  ऊपर  आता
तेज  किरण  से  ताप बढ़ाता
गर्मी   सर्दी   या  हो  सावन
आता  सूरज  के  ही  कारन
धरती  पर  वह लाता मौसम
धूप  हवा  और हँस्ता जीवन


12
चूहा  निकला बिल से बाहर।

नही किसी को घर में पाकर।।


उछल कूद करते वह आया।

पूरे  घर  में  उधम   मचाया।।


बैठ  फ्रीज  पर  वह इतराता।

कभी आँट पर लुढ़का जाता।।


भागा-भागा सोफे पर आता।

खूब  मजे  से  चीं-चीं  गाता।।


तभी भूख से हुआ बेहाल।

लगा खोजने चाँवल दाल।।


इस चक्कर में बिखरा राशन।

डिब्बे    लुढ़के   टूटा  बासन।।


सुनकर मालिक दौड़ा आया।

चूहा  बिल में   भागा  भाया।।



हेमंत कुमार "अगम"

भाटापारा

13

जब भी खाना खाने जाओ
पहले हाथ साफ कर आओ
 बैठो पहले दरी बिछाकर
खाना खाओ खूब चबाकर
खाते समय न पीना पानी
पाचन बिगड़े कहते ज्ञानी
दाल भात में भूल न जाना
तरकारी भी जमकर खाना
फल सेहत का है रखवाला
इसे बनाओ रोज निवाला
अंतिम काम यही कर लो
खाना खाकर पैदल टहलो
दूध पीओ और सो जाओ
शरीर अपना पुष्ट बनाओ
14
है काली मटमैली सड़कें 
सभी जगह पर फैली सड़कें
कोलतार की काली सड़कें
काँक्रिट की मतवाली सड़कें
टेढ़ी मेढ़ी आती सड़कें
नागिन सी बलखाती सड़कें
मैदानों से जाती सड़कें
पर्वत पर इठलाती सड़कें
जंगल जंगल चौड़ी सड़कें
खलिहानो से दौड़ी सड़कें
दूर गाँव से आती सड़कें
शहरों तक फर्राती सड़कें
सबको खूब घुमाती सड़कें
मंजिल तक पहुँचातीं सड़कें
15
जाड़े का दिन आया भैया
काँप रहे हैं ताल तलैया
मछली सोंची चलूँ बाजार
स्वेटर ले लूँ एक उधार
मछली भागी भागी आई
बनिए को आवाज लगाई
मुझे चाहिये बढ़िया स्वेटर
जिसमें लगता गरमी जमकर
बनिए ने स्वेटर दिखलाया
पर मछली को एक न भाया
मछली का मन हुआ उदास
टूट चुकी थी उसकी आस
स्वेटर एक नयी है आई
बनिये ने ये बात बताई
मछली बोली जरा दिखाना
सही फिटिंग वाला पहनाना
कीमत थोड़ी सी तगड़ी थी
स्वेटर बढ़िया जरी जड़ी थी

स्वेटर पाकर खुश थी मछली



पर कीमत ने आग लगाई

16
आ गई है खटखटिया जीप
आओ चलें सब मदकू द्वीप
छेरछेरा का माल पास है
मेला का भी रंग  खास है
कुछ के देखे जाने रस्ते
कुछ के तो अन्जाने रस्ते
हँसी ठिठोली उधम मचाते
मेला पहुँचे हँस्ते गाते
सबने पहले खूब नहाया
फिर मंदिर में धूप जलाया
पुरातत्व की खास धरोहर
देखा फिर शिव मंदिर मन भर
भूख लगी अब सबको भाया
सबने जमकर खाना खाया
झूले की अब बारी आई
मौज सभी ने खूब उड़ाई
लिए खिलौने सबने प्यारा
गुड्डा,गुड़िया ,बस ,गुब्बारा
अब जाने की बारी आई
सबने लिया ओखरा लाई
मंडूक का यह आश्रम सारा
मदकु द्वीप बहुत है न्यारा



17
आड़ा तिरछा और मचलती
भिंडी बड़ी मटक कर चलती
मन ही मन मुस्काती जाती
देख आईना वह शरमाती
उसने पेपर में एड पढ़ा
तब से फैशन का शौक चढ़ा 
 रंग बिरंगी उसके कपड़े
कैटवाक करती वह अकड़े
तरह तरह के बाल बनाती
खाना भी अब कम ही खाती
रैंप वाक करते जब फिसली
टूटा उसकी हड्डी पसली
बिस्तर पर सोयी महिने भर
उतर गया फैशन का फीवर

18
खाली शीशी डब्बा खाली
कार्ड,बोर्ड या कोई जाली
कटे बचे फेकें कपड़े हों
गोंद खिलौने या चपड़े हो
फेंको मत रख लो बस्ता में
चीजें नयी बने सस्ता में










19
ठंडा ठंडा प्यारा  प्यारा
पानी है जी सबसे न्यारा
नदी सरोवर या हो सागर
देखो कितना पानी जा कर
जीव जगत मे सबमें  पानी
मुझमें पानी तुझमें पानी
बर्फ गैस या द्रव बन बहता
तीन रूप में पानी रहता
आसमान में उड़ता पानी
बादल कहते इसको ज्ञानी
गर्मी जब जीरो हो जाता
जमकर पानी बर्फ बनाता
तरल रूप में बहता पानी
बाँध सरोवर भरता पानी
बात याद तुम रखना यारा
पानी से है जीवन सारा

हेमंत कुमार "अगम"
20
झाड़ फूँक तुम कभी न करना
सुन लो भैया सुन लो बहना

सर्दी खाँसी या हो फीवर
उल्टी टट्टी या फिर चक्कर
मानो अब विज्ञान का कहना
ओझा के चक्कर मत पड़ना

कोई प्रेत न ही बाधा है
कहती डाक्टर अनुराधा है
अगर नही तुमको है मरना
अस्पताल से जुड़कर रहना


अंधा लूला या हो काना
ताई अम्मा सबको लाना
आदत अच्छी धारण करना
अस्पताल से काहे डरना

देव रूप तो हैं ये डाक्टर
भागे सब बीमारी डरकर
बहकावों में तुम ना बहना
सेहत सबका सच्चा गहना

हेमंत कुमार "अगम"
21

मैकल फैराडे का बिजली
जब घर-घर पहुँची बल्ब जली


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Thursday, 12 August 2021

दाई "सरसी छंद"

कोनो  काबर  सुध लेवै  जी, कोन बनै रखवार।

परे  हवै  डारा  पाना  जस, दाई  बिन  आधार।।



झिथरा  चूँदी  आँखी  घुसरे, गुलगुलहा हे गाल।

टुटहा खटिया चिथरा कथरी, हाल हवै बे-हाल।।



मइला ओकर कथरी चद्दर, मइला हे सरि अंग।

बुढ़त काल मा धरखन नइ हे,जिनगी हे भिदरंग।।


रात रात भर खाँसत रहिथे, आँखी हे कमजोर।

लाठी धर लटपट उठथे वो, लगा पाँव मा जोर।।



परे रथे वो छिदका कुरिया, कोन्टा मा दिन-रात।

बेटा  बहू  कुभारज  होगे , कोन  खवावै  भात।।



शहर  बसे  हे  बेटा अपने,  गाँव गली ला त्याग।

घर   रखवारी  दाई  बाँटा, कइसन  हे  ये भाग।।



संझा   बिहना   आँखी   ताके, लेथे  एक्के  नाँव।

सोंचत  रहिथे आही बेटा, छोंड़ शहर अब गाँव।।


सुख   पाये   के  बेरा दाई,  पाइस  नइ  आराम।

टुटहा  जाँगर  बोहे-बोहे,  करत  हवै सब काम।।



मया-प्रीत के दाई देवय  , बुढ़त काल मा दाम।

काल कोठरी के जिनगी हे, तहीं बता अब राम।।



हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
"सरसी छंद"

Thursday, 22 July 2021

आल्हा

काले   काले    प्यारे बादल,
आकर कर दो अब उपकार ।
बरसाओ तुम झर झर पानी,
खेतों  में  बह   जाये    धार।।



खग,चौपाया    देख  रहे हैं,
भरे हुए   सब मन में आस।
माओ-माओ  मोर   पुकारे,
आओ बरखा हर लो प्यास।।



गड़ गड़ गड़ गड़ बादल गरजे,
बिजली   चमके अगम अपार।
झूम-झूम   के   बरखा   बरसे ,
सँग      झूमें    सारा   संसार।।



कंधों   पर   नाँगर   धर  आए,
देखो   कैसे    मस्त   किसान।
खेत   जोतने   इस   धरती पर ,
जैसे       उतरा   हो   भगवान।।



हरियाली    छाईं    धरती   पर,
लहरायें    मन   भर     कांतार।
मस्त    मगन    हो  गाए झींगुर,
गाये   मेंढक   मेघ      मल्हार।।



ताल-तलैया   छलकें भर-भर,
झरने    बहते     हैं   सुरताल।
बाँध  लबालब  जल  से देखो,
बारिश   अच्छी   हैं  इस साल।।



गाँवों     में     रौनक    छायेगी,
शहरों    में    होगा      व्यापार।
आयेंगी   जब    अच्छी फसलें,
सबका     होगा        बेड़ापार ।।



हेमंत कुमार "अगम"

भाटापारा छत्तीसगढ़