प्रकृति
सृजन के लिए ही बनी है
जिसे हम टूटना कहते हैं
जिसे हम जुड़ना कहते है
असल में वह
सृजन ही है
प्रकृति के
रचनात्मक मात्र
एक क्रम में
टूटना और जुड़ना
दोनों ही परिस्थितियां
प्रकृति की अपार
रचनात्मक
विशालता का प्रतीक है
हम प्रकृति की प्रकृति को
स्त्री की प्रकृति कह सकते हैं
दोनों में संरचनात्मक
समानताएं हैं
इसी लिए अगर
स्त्री को समझना हो तो
प्रकृति के रास्ते से ही
ही समझना होगा
और प्रकृति को समझना हो तो
स्त्री के रास्ते से ही समझना होगा....
हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment