शब्द मुझसे आकर
कहता है
मुझे कविता में
न ढालो
मुझे गद्य में
न लिखो
मुझे व्याकरण में
न बांधों
बंधकर रहना
मुझे अटपटा सा
लगता है
मुझे छोड़ दो
पलास के फूलों पर
पीपल के पत्तों पर
झूलने दो फुनगियों पर
मुझे छोड़ दो
पुरवाई के संग
उसकी तरंगों में
मुझे बहने दो
मुझे छोड़ दो
चिड़ियों के बीच
उनके कलरव के संग
चहकने दो
मुझे छोड़ दो
नदियों के बीच
बहने दो
नदियों की कल-कल में रमने दो
मुझे छोड़ दो
आदिवासियों के बीच
उनके मचानों पर
मुझे खेलने दो
मुझे छोड़ दो
गांव की गलियों में
उछलने कूदने दो
मुझे छोड़ दो
अनगढ़ अनपढ़ों
के बीच
मुझे उनके मुख से
मुखरित होने दो....
हेमंत कुमार 'अगम'
भाटापारा छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment